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२८. ॐ ह्लीं श्रीं ठं श्रीभग-निपातिन्यै नमः-दक्ष-जानुनि (दाँएँ घुटने में) ।

१९. श्रीभगाक्ष्यै नमः ऐश्वर्य-मयी को नमस्कार।

होता है, तब उसका अर्थ ‘अरिष्ट’अर्थात् अक्षत, पूर्ण, अविनाशी, निरापद होता

१८. ॐ ह्लीं श्रीं खं श्रीभग-मालायै नमः -दक्ष-कर्पूरे (दाएँ हाथ की कोहनी में) ।

शुद्ध-स्वर्ण-निभां रामां, पीतेन्दु-खण्ड-शेखराम् । पीत-गन्धानुलिप्ताङ्गीं, पीत-रत्न-विभूषणाम् ।।१पीनोन्नत-कुचां स्निग्धां, पीतालाड्गी सुपेशलाम् । त्रि-लोचनां चतुर्हस्तां, गम्भीरां मद-विह्वलाम् ।॥२वज्रारि-रसना-पाश-मुद्गरं दधतीं करैः । महा-व्याघ्रासनां देवीं, सर्व-देव-नमस्कृताम् ।।३

‘श्रीं ‘ लगाने से कुबेर केसमान वैभव की प्राप्ति होती है।

सिद्ध-विद्या महेशानि!, त्रिशक्तिर्बगला शिवे! । ।

पीताम्बरालंकृत-पीत-वर्णां, सप्तोदरीं शर्व-मुखामरार्चिताम् ।

वर्ष की ‘पूर्णायु’ की प्राप्ति होती है।

१०. ॐ ह्लीं श्रीं लॄं श्रीधीरायै नमः-वाम-गण्डे (कनपटी-सहित बाएँ गाल में) ।

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पीनोन्नत-कुचां स्निग्धां, पीतालाङ्गीं सुपेशलाम् । त्रि-लोचनांचतुर्हस्तां, गम्भीरांमद-विह्वलाम् ।।२

ध्याये प्रेतासनां देवीं, द्वि-भुजां च चतुर्भुजाम् । पीत-वासां मणि-ग्रीवां, सहस्त्रार्क-सम-द्युतिम् ।

Vipreet Pratyangira Prayog sends again the evil spirts, tantra-mantra prayogs as well as eliminating the wicked and frees devotees from all more info of the miseries.

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